विदेश मंत्रालय सुशासन स्थापित करने के लिए जी-जान से कार्य कर रहा है
पिछले 48 महीनों में प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में विदेश मंत्रालय का कार्यकाल अपार उपलब्धियों से भरा रहा है। इस छोटे से कार्यकाल में भारत की प्रतिष्ठा विश्व में इतनी बढ़ी है कि आज जब भारत बोलता है तो पूरी दुनिया सुनती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की गिनती आज विश्व के अग्रणी नेताओं में की जाती है।
व्यापकता: व्यापकता का पहला प्रमाण यह है कि पिछले चार वर्षों में संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देशों में से 186 देशों में भारत की तरफ से मंत्री स्तर की यात्रा की गई है। इस सरकार से पूर्व ऐसा कभी नही हुआ। प्रधानमंत्री जी ने भी अपनी यात्राओं के लिए ऐसे देश छांटे, जहां या तो भारत से कभी कोई प्रधानमंत्री वहां गया ही नहीं था या 40-50-60 सालों से कोई नहीं गया था। पहले कभी कोई भारतीय प्रधानमंत्री भारतीय समुदाय को बाहर जाकर संबोधित नहीं करता था लेकिन जिस पैमाने पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय समुदाय की व्यापक रैलियों को संबोधित किया है वह अभूतपूर्व है।
व्यापकता का दूसरा प्रमाण है कि पिछले चार वर्षों में हम विदेशों में फंसे हुए 90,000 से अधिक भारतीयों को सुरक्षित स्वदेश वापस लेकर आये हैं और प्रधानमंत्री जी ने बाहर जाकर विभिन्न देशों के शासकों के साथ जो घनिष्ठ संबंध बनाये हैं उनके बल पर सैकड़ों लोगों की सजा कम कराकर या जुर्माने माफ़ कराकर जेलों से भी छुड़ाकर लाए हैं।
रफ्तार: विश्व में 4 एक्सपोर्ट कन्ट्रोल रिजीम (Regime) हैं। 2014 से पहले भारत एक भी रिजीम (Regime) का सदस्य नहीं था। मात्र इन 4 वर्षों में भारत ने 3 रिजीमों (Regimes) की सदस्यता प्राप्त कर ली है।
- एमटीसीआर
- वासेनार अरैंजमेंट
- ऑस्ट्रेलिया ग्रुप।
भारत एससीओ की सदस्यता के लिए भी बहुत वर्षों से प्रयास कर रहा था। पिछले वर्ष हमने एससीओ की सदस्यता भी हासिल कर ली है।
2014 से पहले भारत में कुल 77 पासपोर्ट सेवा केन्द्र थे। इन 4 वर्षों में 227 नये पासपोर्ट सेवा केन्द्र खोले गये हैं और अधिक केन्द्र खोलने की भी प्रक्रिया जारी है। दूरी घटने के कारण लोगों को पासपोर्ट प्राप्त करने में बहुत आसानी हो गयी है। 21 जून को UN द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित कराया गया। यह प्रस्ताव 177 देशों द्वारा Co-sponsor किया गया तथा मात्र 75 दिनों में निर्विरोध पारित हुआ।
नयी पहलेंः 2014 से पहले विदेश मंत्रालय एक संभ्रात मंत्रालय के रूप में जाना जाता था। हमारे कार्यकाल में हमने इस मंत्रालय को जनता से जोड़ने का कार्य किया है और विदेश नीति को गांवों तक ले जाने के लिए ‘‘समीप‘‘ नाम की एक योजना बनाई है, जिसके अन्तर्गत विदेश मंत्रालय के अधिकारी जिन विद्यालयों में पढ़े हैं वहां जाकर विद्यार्थियों से विदेश नीति के विषय में चर्चा करते हैं। पहले विदेश मंत्रालय केवल अंग्रेजी भाषी लोगों तक ही सीमित था। अब हमने सभी प्रांतीय भाषाओं के माध्यम से हर प्रदेश की जनता तक पहुंचने का कार्यक्रम बनाया है। इस योजना का नाम है ‘‘विदेश आया प्रदेश के द्वार‘‘। इस योजना के अन्तर्गत हमारा प्रचार विभाग प्रादेशिक भाषाओं के पत्रकारों से उसी प्रदेश में जाकर उन्हीं की भाषा में विदेश नीति पर प्रश्नोत्तर का कार्यक्रम आयोजित करता है। भारत ने फ्राँस के साथ मिलकर एक अभिनव पहल की तथा जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) का गठन किया।
प्रभावी योजनायें
- मदद पोर्टलः इस पोर्टल के माध्यम से कोई भी व्यक्ति चाहे देश या विदेश में रहता हो, अपनी शिकायत दर्ज कर सकता है। यह पोर्टल सीधे दूतावासों से जुड़ा है। दूतावासों द्वारा किये गये निराकरण की निगरानी विदेश मंत्रालय द्वारा की जाती है।
- ई-माइग्रेटः यह योजना खाड़ी के देशों में काम कर रहे हमारे श्रमिकों को शोषण से बचाने के लिए बहुत ही प्रभावी साबित हो रही है। ई-माइग्रेट पर उन सभी लोगों का विवरण उपलब्ध है जो विदेश में भारतीयों को नौकरी देते हैं और उन सभी श्रमिकों का विवरण भी उपलब्ध है जो नौकरी करने के लिए बाहर जाते हैं। भारतीय श्रमिकों को बाहर भेजने वाले पंजीकृत एजेंटों का विवरण भी उपलब्ध है। इसलिए संकट में फंसने की खबर मिलने के तुरंत बाद हम तीनों से संपर्क करके उसका समाधान कर सकते हैं।
- ई-सनदः विदेशों में जाने वाले या विदेशों में रहने वाले भारतीयों को बहुत बार अपने सर्टिफिकेटों का सत्यापन करवाने की आवश्यकता पड़ती है। यहां आकर सत्यापन करवाना बहुत कठिनाइयों से भरा होता था और इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार भी व्याप्त था। इन दोनों बातों का समाधान करने के लिए हमने ई-सनद पोर्टल स्थापित किया है, जहां ऑनलाईन सत्यापन किया जाता है। यह पोर्टल चालू हो गया है। इसमें सीबीएसई, सीआईआई, महाराष्ट्र सरकार और नेशनल ऐकडेमिक डिपोज़टॉरी (एनएडी) को जोड़ दिया गया है और बाकी जो संस्थाएं सर्टिफिकेट देती हैं उनको जोड़ने का काम चल रहा है।
- पीबीडी के विषय संबंधित सत्रः 2014 से पहले प्रवासी भारतीय दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता था लेकिन वो परिणाममूलक नहीं होता था केवल मेला बनकर रह जाता था। हमने यह निर्णय लिया कि हम बड़े पैमाने पर प्रवासी भारतीय दिवस 2 वर्ष में एक बार मनायेंगे। अन्तराल के एक वर्ष में विभिन्न विषयों को चुनकर उस विषय के प्रवासी भारतीय विशेषज्ञों को आमंत्रित करके चर्चाओं के सत्र आयोजित करेंगे ताकि प्रवासी भारतीयों की भारत के नीति-निर्धारण में भी प्रभावी भूमिका हो सके। यह प्रयोग बहुत ही सफल रहा है। पिछले वर्ष हमने ऐसे 10 सत्र विभिन्न विषयों पर आयोजित किये थे और इस वर्ष अभी तक 4 ऐसे सत्र हो चुके हैं तथा 5 और सत्र होने बाकी हैं। इन सत्रों के कारण प्रवासी भारतीयों में यह संदेश गया है कि प्रधानमंत्री जी की नये भारत की कल्पना को साकार करने के लिए हम उनकी प्रतिभा का भी उपयोग कर रहे हैं।
- सोशल मीडिया द्वारा शिकायतों का निवारणः हमारे सभी मिशन और पोस्ट ट्विटर से जुड़े हुए हैं ताकि शिकायतों का शीघ्र निराकरण किया जा सके। मैं स्वयं अपने ट्विटर के माध्यम से लोगों का दुख-दर्द सीधे सुनकर तुरन्त उसका निराकरण करवाती हूं। यह एक नितांत नई पहल है।
- विकास के लिए कूटनीतिः हमारी सरकार से पहले कूटनीति का प्रयोग घरेलू विकास के लिए नहीं किया जाता था किन्तु हमने प्रधानमंत्री जी द्वारा चलाए गए सभी फ्लैगशिप कार्यक्रमों जैसे Clean India, Skill India, Digital India, Start up India, Smart Cities की सफलता के लिए कूटनीति का प्रयोग किया और इसका नाम विकास के लिए कूटनीति “Diplomacy for Development” रखा । इस पहल के अन्तर्गत हमने जिन देशों में इन कार्यक्रमों से संबंधित तकनीक उपलब्ध थी और जिन देशों में पूँजी उपलब्ध थी, उन देशों से तकनीक और पूँजी का सहयोग दिलवाया तथा संबंधित मंत्रालयों से उन देशों के एमओयू (MoU) करवाकर घरेलू विकास में अपना योगदान दिया है। यह सिलसिला निरंतर आगे बढ़ रहा है।
मैं मानती हूं कि अपनी योजनाओं और कार्यक्रमों की सफलता की सबसे प्रभावी कसौटी है कि लोग उनकी चर्चा करें और मैं यह पूर्ण विश्वास से कह सकती हूँ कि हमारा काम बोल रहा है।
जब मैंने विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली तो सबसे बड़ी चुनौती मेरे सामने थी कि विदेश मंत्रालय की नीति में से “आम जन” गायब था। मेरा यह मानना है कि नीति देश की हो या विदेश की यदि वो लोक केन्द्रित नहीं है तो वह नीति निरर्थक है, खोखली है। इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी था मंत्रालय के अधिकारियों को, राजदूतों को, संवेदनशील बनाना। इसलिए पहले ही राजदूतों के सम्मेलन में मैंने उपस्थित अधिकारियों को बताया कि यह मेरी पहली प्राथमिकता है। मैं जिस कार्य को बहुत कठिन और जटिल मानती थी, अधिकारियों ने पहले ही दिन से मेरा संकेत पूरी तरह समझ लिया और तुरंत अपनी कार्यशैली बदल दी। इतनी जल्दी विदेश मंत्रालय के काम करने का तरीका लोकाभिमुख हो जायेगा यह मैंने भी नहीं सोचा था लेकिन आज विदेश मंत्रालय देश और विदेश में सबसे संवेदनशील मंत्रालय के रूप में जाना जाता है। यह शैली किसी एक व्यक्ति से ही जुड़कर ना रह जाये बल्कि व्यवस्था का अंग बने इसलिए हमने एक घोष बनाया हैः-
‘‘परदेस में आपका दोस्त, भारतीय दूतावास‘‘
(Indian Embassy Home Away from Home)
जब देश में किसी व्यक्ति पर कोई संकट आता है तो उसकी मदद के लिए परिवार होता है, रिश्तेदार होते हैं, मित्र होते हैं, जनप्रतिनिधियों का सहारा मिल सकता है लेकिन विदेश में तो उसका कोई नहीं होता। वो बिल्कुल अकेला खड़ा यह भी नहीं जानता कि अपनी पीड़ा किस से कहे, ऐसे में हमने उसे भरोसा दिया है कि विदेश में भी उसका कोई अपना है और वो है भारतीय दूतावास।
विदेश मंत्रालय से जुड़े किस्से तो हर रोज सुनने को मिलते हैं। जितने लोग आते हैं वो कोई न कोई किस्सा सुनाकर ही उठते हैं। लेकिन मैं विदेश में फंसे चार लोग जो सुरक्षित वापिस लाए गए, उनके स्वयं के द्वारा बताई गई बातों का वीडियो संलग्न कर रही हूं।
समापन टिप्पणीः प्रधानमंत्री जी ने सरकार बनने के तुरन्त बाद सुशासन शब्द पर बहुत ज़ोर देकर अपने सभी सहयोगी मंत्रियों को सुशासन स्थापित करने के लिए कार्य करने का निर्देश दिया था। ऊपर लिखे गए तथ्यों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विदेश मंत्रालय सुशासन स्थापित करने के लिए जी-जान से कार्य कर रहा है।
सुशासन शब्द का अर्थ महात्मा गाँधी के शब्दों में ‘‘आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति को दृष्टि में रखकर नीति बनाना है‘‘। सुशासन का शब्द पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के शब्दों में अन्त्योदय यानि आखिरी आदमी का कल्याण करना है। इन दोनों परिभाषाओं पर यदि विदेश मंत्रालय के कार्य को जांचा जाए तो सुशासन शब्द पर हमारी नीति पूरी तरह खरी उतरती है। क्योंकि हमने विदेश नीति को एयर कंडीशंड कमरों से निकालकर तपती दुपहरी में खड़ा किया है, हमने अपने दूतावासों के द्वार सूट, बूट और टाई वालों के साथ मैले-कुचैले कपड़े पहनने वाले ग़रीब लोगों के लिए भी खोले हैं। आज देश या विदेश में रहने वाले भारतीयों का गौरव भी बढ़ा है और हौंसला भी। गौरव प्रधानमंत्री मोदी जी के प्रभावी नेतृत्व ने बढ़ाया है और हौंसला विदेश नीति की संवेदनशीलता ने। यह हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है।